आखिरी बूँद
सूखी मिटटी
को
सौंध कर
सौंधी हवा में तैरकर
पहुंची
उसके पास
जो बैठा था कहीं
अँधेरे में,
किसी सन्देश के इंतज़ार में.I
सूख गयी थी
उसकी आँखें
और रुकी पड़ी थी
सांसें I
एक याचना थी
कि
उनके बंद होने से पहले
एहसास
हो जाए एक बार,
उसके ख्यालों में
और उन्ही बंद आँखों में
वो
समेट ले
वे सारे पल,
जो कभी उसने साथ बिताये I
छोटे
,रंगीन
,मजबूत
पल I
हवा की उसी चादर ने
लपेटा उसे I
जिसके भारीपन से
जिसके गीलेपन से
पूरी हो गयी थी
उसकी आस I
वो चल कर आई,
उसके बालों को सहलाया,
बैठी कई घंटे
और बातें की
उसने
सारी
जो कहना चाहा था
हमेशा I
हथेली खाली नहीं थी इस बार I
उसके हाथों को गहा उसने
काफी देर,
सुनता रहा
उसकी आवाज़
देखता रहा
उसे ,
जैसे
रखना चाहता था
उसके सौंदर्य को
अपने अन्दर I
हवा के चादर ने कसा उसे
और
उसके सौन्धायी खुसबू
में खो गया वो I
आँखों के किनारे से
निकली
इक धारा
सूखी मिटटी
को
सौंध कर
सौंधी हवा में तैरकर
पहुंची
उसके पास
जो बैठा था कहीं
अँधेरे में,
किसी सन्देश के इंतज़ार में.I
सूख गयी थी
उसकी आँखें
और रुकी पड़ी थी
सांसें I
एक याचना थी
न जाने किस्से
कि
उनके बंद होने से पहले
उसके छुअन का
एहसास
हो जाए एक बार,
उसके ख्यालों में
और उन्ही बंद आँखों में
वो
समेट ले
वे सारे पल,
जो कभी उसने साथ बिताये I
छोटे
,रंगीन
,मजबूत
पल I
हवा की उसी चादर ने
लपेटा उसे I
जिसके भारीपन से
जिसके गीलेपन से
पूरी हो गयी थी
उसकी आस I
वो चल कर आई,
उसके बालों को सहलाया,
बैठी कई घंटे
और बातें की
उसने
सारी
जो कहना चाहा था
हमेशा I
हथेली खाली नहीं थी इस बार I
उसके हाथों को गहा उसने
काफी देर,
सुनता रहा
उसकी आवाज़
देखता रहा
उसे ,
जैसे
रखना चाहता था
उसके सौंदर्य को
अपने अन्दर I
हवा के चादर ने कसा उसे
और
उसके सौन्धायी खुसबू
में खो गया वो I
आँखें खुली
तो
वो जा चुकी थी
और
वह कसा जा रहा था I
चादर की सिलवटों में
उसकी सांसें भी
कसी जा रही थी I
वो फिर दिखी
आखिरी बार
पर न जाने क्यूँ
रोये जा रही थी
और न जाने क्यूँ
उसके आँखों के किनारे से भी
निकल गयी
इक बूँद
आखिरी I
No comments:
Post a Comment