जीवन की राह में
जब आये वो पल
जो हंसाते हुए रुला गए
और रुलाते हुए हंसा गए,
तब मालूम हुआ मोल
शायद,
इस जीवन का
और मूल्य
इन पलों का
जिनमें थे कुछ
मुस्कुराते चेहरे
और
उनकी बिसरी याद I
किताबों के
सुर्ख पीले पन्नों पर
अब भी मिल जाते हैं
वे थोड़े शब्द,
जिनकी श्याही भी सूख चुकी है
सुनाते हैं पर जो ढेरों पुराने किस्से I
पर
पलों और किस्सों के सागर में
डूबकर भी
निकल नहीं पाती
यादों की वह चमकती मोती
जिसे सहेजा था हमने
कभी I
पन्ने पलटने से डर लगता है अब
उस अँधेरे से
जहां कुछ नहीं है अब
न हंसी,
न शब्द,
न किस्से,
न पल,
न कोई मोती I
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