Saturday, December 22, 2012

माँ, याद तुम्हारी आती है।

इस कमरे का एकाकीपन 
तन्हा है ये मेरा मन 
इस अंधियारे में तेरी याद 
यादों के दीप जलाती है,
माँ, याद तुम्हारी आती है।

पास के छत पर माँ कोई 
गोद के मुन्ने में खोई,
कोमल थपकी दे-देकर 
जब लोरी कोई सुनाती है,
माँ, याद तुम्हारी आती है।

जब गर्म तवा छू जाता है 
हाथ मेरा जल जाता है 
या तेज धार की छूरी से 
ऊंगली ही कट जाते है,
माँ, याद तुम्हारी आती है।

हाँ, तुमसे मेरी दूरी है 
कुछ ऐसी ही मजबूरी है 
देर रात तक बिस्तर पर 
जब नींद मुझे न आती है,
माँ, याद तुम्हारी आती है।

कुछ बड़े सही मेरे अरमाँ 
पर बुरा नहीं मैं, मेरी माँ 
क्यूँ बार-बार तू रो-रोकर 
दिल के टूकड़े कर जाते है,
माँ, याद तुम्हारी आती है।

जब मुखड़ा तेरा हँसता है 
मुझे कितना अच्छा लगता  है 
इक दिन तुम्हें हँसाउंगा 
आवाज़ ये दिल से आती है, 
माँ, याद तुम्हारी आती है।

-- राहुल कुमार
(सर्जना 27वें अंक से)

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